कोई संयोग,फिर वियोग......(Script)
मुझे शॉपिंग करनी थी,दोस्त की बहन की शादी जो थी,प्रतापगढ़ के लिए निकलना था अगले ही दिन.....
जा पहुंचा वही नवाबों के शहर की मशहूर मार्केट अमीनाबाद,एक अपने लिए ब्लेजर लिया,कुछ कपड़े,एक चस्मा,और फाइनली 11th की केमिस्ट्री की सेकंड-हैंड बुक,जिसके पन्ने चेक करते समय उसपर पड़े नाम पर नजर जा चुकी थी,कुछ प्रतिभा लिखा था ,शायद ज्यादा ध्यान से नहीं देखा था अभी....
सब कुछ खरीदकर,घर के लिए निकलने का मन कर रहा था,काफी थक भी चुके थे,पहुंच गए टैक्सी स्टैंड,
आओ भैया राजाजीपुरम? हम्म्म भैया,राजाजीपुरम,और बैठ गया......
बचपना भी रहा होगा शायद कि मैं अपनी बैग,हांथ में ब्लेजर और ऊपर से आंखो पर नीला चस्मा,संभल ना रहा था मुझसे अब शायद...
फाइनली,मंजिल आ चुकी थी, मैं पहुंच चुका था राजाजीपुरम के टैक्सी स्टैंड,पहुंचते ही भागा,और घर के लिए ई-रिक्सा ले लिया....
थोड़ा ही बढ़े कि याद आया,पीठ पर बैग ही नहीं, जिसमें वो केमिस्ट्री की बुक और तकरीबन 5000 का सामान रखा हुआ था,दिल धक से हुआ,और मैं रिक्से को रुकने को बोला,वो रुका भी न था कि मैं उसकी उलटी दिशा में पीछे को भागा......
दौड़कर पहुंचा टैक्सी स्टैंड ढूंढने को वही वाली टैक्सी,पर यहां सब हरी हरी,
उन हरे की चकाचौंध में वो खो चुकी थी जिसपर मैं बैठकर आया था शायद....
बहुत कोशिश कर चुके थे तकरीबन 1 घंटे तक,हर जगह पता किए....
पर वही परिणाम,असफल!!!
आखिर में चल दिए घर को,निराश,नि:उम्मीद,उदास......
अब क्या शादी में जाना तो कैंसल ही था.....
पर केमिस्ट्री की बुक तो लानी ही थी,जिसमे फ्यूचर था.....
फिर से पैसों की व्यवस्था करके,फिर पहुंचे अमीनाबाद,उसी दुकान पर, जहां से खरीदी थी पहले भी हमने.....
दुकानदार पहचान गया था शायद,वो किसी को कॉल करने लगा,और आधा घंटे बाद आने को बोला....
तब तक मैं वहां की एक दुकान पर चाउमीन खाने लगा,जहां अक्सर खाया करता हूं,जब जब जाता था वहां...
थोड़ी देर बाद उसी का कॉल आया और मैं जा पहुंचा उसी दुकान पर फिर से ,पर इस बार किसी आशा से,उम्मीद से,वही अपनी प्राकृतिक मुस्कुराहट के साथ....
जाते ही देखा ,वही किताब,जो खोई थी मुझसे कुछ दिन पहले,पर वह किसी गैर,अंजान लड़की के हांथ में थी..…उसने तुरंत मुझे वो किताब पकड़ा दी,और मेरी वो बैग भी निकाल कर लाई,जो खोई थी किताब के साथ ही....
वो प्रतिभा थी!!!!!, हम्मम वही *प्रतिभा!*,जिसका नाम उस किताब पर लिखा था....
वह दुबारा से उसके हांथ में जा पहुंची थी,उसी की किताब,और दुबारा मेरी हांथ में आ चुकी थी किताब,जो मेरी हो चुकी थी अब....,
ये संयोग था या अभियोग,मुझे नहीं पता,पर कुछ तो था,जो अब होने वाला था....
उसने दुकान के बाहर आकर मुझसे कॉफी पिलाने को पूछा,मैने तुरंत हम्मम कर दी,क्युकी मैं यह समझना चाहता था,जो हो रहा था,मुझे वास्तव में कुछ समझ ही ना आ रहा था....
मैं उसकी स्कूटी पे बैठा,और वो Wow Momo ले जा चुकी थी मुझे,बाहर लगे बोर्ड पर नजर डाली तो मालूम हुआ!!!!
वहां उसने बताया ये मेरी बुक थी जिसे मैंने पिछले साल बेंच दी थी,और मैं इस बैग को टैक्सी में पड़ी पाई, क्योंकि मैं अकेली ही बची थी आगे जाने को,तो मुझे लगा मै ही लिए जाती हूं,क्योंकि इसके बाद ड्राइवर ही उठाएगा....
मैं भौचक्की थी देखकर कि ये मेरी बुक एक साल बाद.......मेरे ही पास,कुछ इस तरह.....
अब मैं सुलझ चुका था,पर वो उलझ चुकी थी शायद........
~UdaiRajSingh
Instagram:-https://www.instagram.com/yours.own_udai_r_singh08
Well written bhaii❤️❤️❤️
ReplyDeleteThankyou didi😁❣️
DeleteKya coincident hai .... jAbardasst.....
ReplyDeleteHnn bhai😅
DeleteThanks bhai❣️❣️
Very nice creation bhai👍
ReplyDeleteThanku bhai,it means alot❤️
Deleteaccha likha hair Bhai👌👌👌
ReplyDeleteThanku bhai❣️🙏🏽
DeleteBahut umda
ReplyDeleteDhanyawaad anshika jii🙏🏽
DeleteBhaii....kya likha h ...kya sach me esa hua tha ?
ReplyDeleteHarshit sriSrivast
Ab bhai harshitt...kya hi kahoon ispar😅
DeleteReally awesome incident hai 😍
ReplyDelete❣️❣️❣️🙏🏽🥰
Delete♥️♥️♥️♥️
ReplyDeleteInteresting ,leave ur readers in suspense is good 😂
ReplyDeleteSuper se bhi upar✍️👌👌❤️
ReplyDeleteMeans alot❣️
DeleteWhat a coincidence 👍
ReplyDeleteImpressive 👀
ReplyDeleteYou really have the talent to seek the attention of your audiences.
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