एक क्षणिक रिश्ता और फ़ोन.....(Part 1)


 कि दौड़कर पहुंच गया कानपुर स्टेशन,देर भी हो रही थी.......टिकट लिया...और देखा तो 3 नंबर प्लेटफार्म पर एक इंटरसिटी खड़ी हुई थी...फिर दौड़ना शुरू किए...और ट्रेन के हॉर्न देने से पहले ही चढ़ लिए...
सबसे पहले सीटों पे नज़र दौड़ाई तो कोई खाली ही ना थी,चढ़ गए एक सीट के ऊपर लगेज बर्थ वाले कॉर्निश पे...,बैग से मूंगफली निकाली..और खाने लगा....अब बस इंतजार था ट्रेन चलने का,अभी लखनऊ पहुंचकर चेंज भी जो करनी थी....
ट्रेन उन्नाव में रुकी ही थी कि प्रवेश होता है एक शख्स का,"जो एकटक निहारने सा लगा",ऐसा प्रतीत ही हुआ होगा मुझे,शायद ऐसा ना रहा होगा वास्तव में.....
उसके साथ एक महिला भी थी...जो शायद उसकी मम्मी रही होगी....दोनों सामने वाली बर्थ पर आकर बैठ गईं...
चलते ही आगे समोसे बिकने भी आ गए और उसने ले लिए.....

मुझे उम्मीद ही ना थी ऐसी कि उसने हल्का सा हांथ आगे बढ़ाकर,आंखों को समोसों की तरफ इशारा कर मुझसे उसको खाने लिए पूछा.....


मैने एक आंख मारकर,होंठो से उसके समोसे की ओर इशारा कर उसे ही वो समोसे खाने के लिए बोला,और वो खाती रही धीरे धीरे बिना मुंह खोले हुए,देखती हुई मुझे ऊपर की तरफ तिरछी निगाहों से एक मुस्कुराहट के साथ.....गले में "S" नाम का लॉकेट भी पहने हुए थी...


आगे बढ़े ही थे थोड़ा साथ में कि उसने इशारों में मेरा नंबर मांग ही लिया,पर ये भी जताना चाह रही हो जैसे कि मम्मी के जान जाने का डर भी है मुझे...

हम लोग बातें तो कर ही रहे थे बिना एक लफ्ज भी निकाले हुए मुंह से...
वो मेरे सामने की सीट पर नीचे खिड़की पे जो बैठी हुई थी......और मैं ऊपर की ओर उसके सामने.....
फिर क्या लखनऊ भी आने वाला था...और मैंने अपनी बैग RS Agarwal की मैथमेटिक्स की बुक निकाली...उसके आखिरी के पेज का एक कॉर्नर फाड़ा...और नंबर लिख के उसकी पीछे वाली सीट पे जाके बैठ गया....और उसे भी अपने हांथ बाहर निकालने को बोल दिया....इधर मैंने अपना हांथ बाहर निकाला,एक कागज के साथ,पीछे सीट पर बैठी उसने भी हांथ निकाला,और वो कागज थाम लिया अपने हाथों में,फिर खट से मेरा हाथ अंदर और फिर मैं उसके साथ वाले अपने पोर्शन में आकर ऊपर कॉर्निस पर चढ़ गया.... कि लखनऊ भी आ चुका था अब...
मैं उतर चुका था ट्रेन से...बिलकुल भी अंदाजा ना था उसे इस बात का..कि..मेरी मंजिल लखनऊ ही थी....बस..
वह और आगे जा रही थी,प्रयागराज!!!!!

अब क्या????
आधे घंटे बाद उसने कॉल करी और पाया कि मैं ट्रेन में ना हूं...

आवाज बदल चुकी थी उसकी,आवाज में भी उसकी आंखों के आंसू झलक रहे थे... मैं लखनऊ स्टेशन पर बैठे बैठे इंतजार कर रहा था अगली ट्रेन का,जो आने ही वाली थी कुछ देर में...

कि फोन भी स्विचऑफ होने वाला था...अब मेरा...
और शायद रिश्ता भी...✍️
                                  ~उदयराजसिंह'अपराजित💥

                              Part 2🔜

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Comments

  1. Excited for the next part😯

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  2. Why all coincidence happens with you only😅

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  3. Waiting for next part..🥰🥰

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  4. I start guessing the name of the girl after reading this😅😁 Like what could be the name starting with 'S'.

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  5. I thought you are good in writing poetries always but amazed to see this.👍

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  6. Are bhai waqt ka intezar tumhari mulakat ussi se hogi 😅😅

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  7. Great way of writing 🤗
    Waiting for the 2 part🧐

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