बाबा की याद....(Poetry)

थी बसंत की सप्तम उस दिन...,दिवस था रविवार को उस दिन...
छोड़ दिया था देह को उनने,छोड़ दिया घर बार था उस दिन....

हो जाता था सर्वस्व बुरा,मेरे लिए जो बुरा कहता....
फिर वो चाहे मां होती,होती चाहे फिर दादी मां...

टूट गई एक लाठी थी उस दिन,बची थी सहारा, एक ही उस दिन...
जब बची सहारा दादी मां....

जो खुलकर साथ आ जाते थे,जब जब आंसू आंखों में आते थे...
जब जब हम रो देते थे, जब जब मम्मी की डांट सुनी.....

थी अपार बेचैनी उस पहर प्रति पहर-जब शाम ढली रवि अस्त हुआ....
जब हुईं थी ऋतुएं शराबोर, जब बसंत था खुद में मस्त हुआ....
तब वक्त हमारा सुस्त हुआ, तब वक्त हमारा सुस्त हुआ.....

था दुख अपार निज मन में कि, साथ ना थे जब हम उनके....
जब प्राण तजे थे देह से जब,छोड़ चले निज लोक को जब...
पर रही खुशी थी किंचित भर,उनकी जुबां का जो अंतिम नाम हमारा था...
है निष्कर्ष यही इसका, कि उदय उन्हें बहु-प्यारा था....

नाम अमर है उनकी अब,मुस्कान अमर है उनकी अब...
नाम "उदय" है देन उन्ही की...पहचान अमर है उन्ही की अब.....
जब जब स्मृति उनकी करते,खुद से,खुद में डूब के हम जाते.....
फिर प्रति पल मे ही निकाल जाते,पर साथ में ही हम संवर जाते...हम संवर जाते.....हम संवर जाते....✍️
                            ~उदय राज सिंह💥


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