छांव लग रही थी मुझे....(Poetry)

छांव लग रही है मुझे,
कि धूप नहीं लग रही है मुझे
 तपन नहीं लग रही है वह जलन नहीं लग रही है मुझे....
धूप नहीं लग रही मुझे.....✍️

क्या इस जहान में ही हूं मैं,या मिजाज बदल गया है मौसम का....

कि नफरत नहीं हो रही मुझे अब किसी से,
कि मुहब्बत हो रही है शायद किसी से...
या फिर इबादत हो रही किसी की...
पर किसकी,क्यों और कैसे...
कुछ पता नहीं....

क्या देखा है तुमने कभी...?नहीं!
क्या महसूस भी किया कभी कि क्या महसूस करता है वह तुम्हारे लिए?नहीं
तो फिर ये कैसी इबादत!!!?
इबादत तो अविनाशी है,किसी आकार की इसे क्या है जरूरत.....
शायद तुम्हे नहीं मालूम धूप नहीं लग रही मुझे....✍️
                    ~उदय'अपराजित💥


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