यूं मुझे देखकर खिड़की पर आया ना करो......(STellar)
सिलसिला कुछ यूं शुरू होता है जब मैंने इंस्टाग्राम पर स्टोरी लगाई,वो भ Green circular से घुमाकर Close Friend वाले फिक्शन में,और उसको भी दिख गई वो स्टोरी….
हालांकि हमारा कोई इंटेंशनली उसको क्लोज फ्रेंड में एड करने का कोई इरादा नहीं था,एक तरफ से क्लिकिंग फेनोमेना अपनाया हुआ था….
लेकिन उसका जवाब आता है,अरे तुमने हमको क्लोज फ्रेंड में एड किया उदय!?वैसे कोई नहीं,हमको हर कोई ही कर दिया करता है और हंस दी अपनी इमोजी से…..
फिर क्या था, मैंने भी जवाब में sarcasm ठोंक दिया, अरे नहीं नहीं,एक तरफ से करता चला आया हूं…
मुझे तो पता भी नहीं,तुम हो कौन और हंस दिया कहकर!?
ऐसे ही कुछ बातों का सिलसिला बढ़ा….बातें गहराई तक जा पहुंची….
कि बिना मिले ही,बिना एक दूसरे के जाने ही….दिल की बातें तक बेझिझक साझा होने लगी…
हालांकि उसने मेरा नाम सुन रखा था,ऐसा उसने ही बताया…
अब दिल की बातें हों,प्रेम तक ना पहुंचे ऐसा भी हो सकता है भला…..खैर पसंद नापसंद सब समझने लगे थे एक दूसरे को,थे तो मीलों दूर…पर दिल जुड़ने लगा था….
शायद उसने भी कई बार कहने की की,और कहा भी इशारों इशारों में अपने इजहार को मुझसे….पर मैंने तब नजरंदाज किया उसको कि अभी थोड़ा और समझ लेते हैं,कारण कि जल्दबाजी नहीं करना चाहते थे बिलकुल ही….
बाहर से पत्थर दिखने वाला मैं दिल का बहुत कमजोर हूं,बहुत जल्दी ही हार जाता हूं,और फिर जब अलगाव की घड़ी आती है,नहीं सहन होता…..इसीलिए शायद देर कर रहा था थोड़ा और समझने में…पर अब क्या ही होने वाला था,किसे ही पता था……
एकाएक वो अपना अकाउंट ही डिलीट कर देती है कुछ दिनो बाद,मेरा साहस थोड़ा कमजोर पड़ जाता है….
ऐसे ही 2 महीने तक हो जाते हैं,उसका दूसरा अकाउंट मिलता है हमें,पर हम जान बूझकर दिल पर पत्थर रखकर नजरंदाज करते हैं….लेकिन ये इंस्टाग्राम वाले,इन रोबोटिक मशीनों को क्या पता,इमोशंस क्या होते हैं…बार बार रिकमेंडेशन देने पर कमजोर कर रहे थे अब…
हालांकि एक दिन उसकी रिक्वेस्ट आ ही जाती है,और फिर शुरू होता है बातों का सिलसिला,कुछ शिकायतों के साथ….
“कन्हैया तो भूल ही गए”,उसके कहते ही “अरे राधे को कन्हैया कैसे ही भूल सकते हैं भला” और फिर हम उसी दुनिया में वापस लौटने के ओर……बढ़ चलते हैं….
हालांकि उसकी रिक्वेस्ट बाद में msgs पहले ही आना शुरू होते हैं,पहला मैसेज “हैप्पी जन्माष्टमी अपराजित” वो भी बिना फॉलो किए हुए;मजाक ही लग रहा होगा,इतना ही नहीं,मजाक तो यहां होता है जब वो बर्थडे विश करती है,मेरा जवाब देर से जाने पर जवाब में “बहुत जल्दी थैंक्यू बोल दिए मिस्टर सेलिब्रिटी”फॉलो अब भी नहीं करती पर…..क्या चल रहा था उसके मन में, मैं अब भी न समझ पा रहा था…शायद ना उसने समझने दिया खुद को,और ना मैंने उसे खुद को….
इतना ही नहीं,बदले में हमारी गुड मॉर्निंग का जवाब गुड आफ्टर नून से देते हैं जनाब… मैं भी मुस्कुरा जाता हूं ये देखकर…खैर ये तो हमारी जुगराफियां का एक हिस्सा हुआ करता था,जो अक्सर ही हो जाया करता था….
कि होता फिर यूं है कि फिर हम भी कट जाते हैं कुछ दिनो के लिए सोशल मीडिया से अपने कुछ व्यस्त शेड्यूल के चलते….शायद ये भी वर्तमान अप्रत्याशित घटना का एक महत्वपूर्ण कारणों में से एक रहा होगा….
कि शायद मिलना चाह रहे थे हम भी उससे,बावजूद इसके कि मालूम था हमें,मिलकर हम दिल हार बैठेंगे,और फिर उसके जवाब में क्या हो,क्या न हो….कैसे ही अंदाजा लगाया जा सकता था पहले ही….टच में नहीं थे उतना जितना कुछ महीनो पहले हुआ करते थे….वही सुबह की व्यस्तता,फिर क्लासेज और वहां से सीधे कोचिंग जाना,तकरीबन 9 से 10 बजे तो हमारे अपने रूम पर एंट्री होती थी हमारी और अब भी वही हाल बना हुआ है…भला कैसे ही इतना ध्यान रख पाते जो कभी लॉकडोन में हुआ करता था…फोन से वासता भी खत्म हो रहा था….!!!खैर ऐसे ही चलता रहता है…यादों में बने रहते थे वो दिन अक्सर….! कि एक बात तो है,लड़की अच्छी हैं,मिले भले न थे अभी तक!!!
हालांकि एक दिन हम मिलने ही वाले होते हैं, कि हमारी देर चलने की आदत फिर भारी पड़ जाती है और हम इतना लेट रहते हैं जितना उसका कॉलेज से घर पहुंचना…
वो अपने होमटाउन से ही आई थी सीधे….और बारिश भी होने वाली थी….
हमारे देर होने पर उसका इंतजार ना कर पाना…कहीं न कहीं हमारे साहस को फिर एक बार कमजोर करता है,और हम उम्मीदों को वहीं पर रोक देते हैं…
नहीं मिलते फिर कभी…जान बूझकर कि कहीं.._…!!!!
खैर इमोशंस और प्रेम में अंतर होता है,और ये अंतर हम भलीभांति समझते थे….इसीलिए अपने इमोशंस को छुपाकर प्रेम का दिखावा करते रहे…दिखावा सच ही था,मिथक नहीं….
कि उसकी दूरियां,और बढ़ती दूरियां बढ़ती चली जाती हैं…जैसे जैसे हमारा साहस कम होता चला जाता है उससे मिलने को…
कारण कि वाकिफ थे हम भलीभांति खुद से…
ना जाने कितनी ही कविताएं लिखीं उसपर परिकल्पना का नाम देकर,कुछ उसने सुनी,कुछ नहीं भी सुनी…
पर मैं करता रहा प्रेम बिना कोई रूप दिए,बिना कोई नाम दिए…एकदम अप्रत्याशित…..
कि कितनी ही बार हमने कोशिश की होगी उससे बात करने को इंस्टा की किसी पोस्ट पर टैग करकर..
पर जो vibes, जो प्रत्याशा सिलसिले की शुरुआती दिनों में देख रहे थे,अब नहीं दिख रहा था…वही हूबहू सिलसिला पाने के इंतजार में देर होती रही,देर होती रही….और देर होती चली गई…
शायद सब्र बहुत है मुझमें,जिसका बांध किसी लक्ष्मण रेखा से कम नहीं….तभी तो सालों का इंतजार.!!…किसी पारस पत्थर पाने की परिकल्पना से कम थोड़ी होगा।…इस मामले में बिलकुल भी जल्दबाजी नहीं करना चाहता था मैं और नहीं भी की…..पर कुछ ऐसा घटता है उसी वर्ष के शुरुआती ठंड के दौरान,फिर खीच ले जाता है वो दर्द मुझे उसके पास…
मैं बयां कर देता हूं उससे सब कुछ बिना कुछ सोचे,बिना कुछ समझे….ऐसे जैसे जन्मों से जनता हूं उसे…पर फिर वही रिटर्न में….अप्रत्याशित जवाब…पर बिलकुल भी इंतजार ना कर पाने वाले हम,आज किसी के ऐसा करने पर बुरा नहीं लग रहा था..।
सिर्फ 3 दिन की मुलाकात,किसी और से…मुझे वहां धकेल देती है…जहां मैं संस्कृति(वो) के साथ जाने में डर रहा था….पर प्रेम और किस्मत हमेशा साथ थोड़ी देते….किन्ही भी दो लोगों को एक ही समय पर आपस में ही हो जाए,ऐसा किसी संयोग से कम थोड़ी है।…
जब हम उससे अपने दर्द बयां कर रहे होते हैं,तो आज भी उसकी शिकायतें…”मुझसे मिलना नहीं चाहा कभी तुमने?सुनकर ही मेरे मन में अनेकों प्रश्न”कैसे कैसे,आखिर कैसे?फिर वो क्या था जब बारिश हुई थी और मैं अकेला ही टहला था,अकेला रुका था उस गेट नंबर 4 के कॉर्निश की छांव में,पर महसूस कर रहा था उसको अपने दाहिनी तरफ,बोल भी दिया था वो सब जो जो बोलना था,कहना था,जवाब भी पा लिए थे वही सब,वो शायद पहली और आखिरी बार था,जब प्रत्याशित जवाब मिल रहे थे,कारण कि वो परिकल्पना थी उसकी।भले ही वो चली जा चुकी हो बिना इंतजार किए,बावजूद इसके कि बताया रहा होगा मैने ट्रैफिक का कारण…
उसका वहां से चले जाना सिर्फ उसका वहां से चले जाना नहीं था,बल्कि हमारे मन में तमाम सवालों को खत्म भी करता था,तमान सवालों को उकेर भी रहा था….
एक बार और मिलते हैं हम संयोग से ही…वो मुलाकात आखिरी भी थी संयोग से ही…पर वो वियोग की पहली और आखिरी घड़ी थी…क्योंकि जिसे हम “एक बार और मिलने” का नाम दे रहे हैं,वो ना सिर्फ आखिरी, बल्कि पहला भी था….
हालांकि उसका खुद से पहचान करवाना और मास्क उतरकर कहना…”पहचाना”…और फिर हमारे हृदय में वही पीड़ा का हो उठना जब बारिश होने के बावजूद हम मिलने को बेताब चलते चले आ रहे थे…फिर से वही पीड़ा,पर बाहर से एकदम शांत…नजरंदाज करने का दिखावा करना….किसी अंदरूनी विरोधाभास से कम नहीं था…..
उसका एक और प्रश्न दाग देना छट से हमारी पीड़ा की पराकाष्ठा होने के ही दौरान कि “तुमने कभी कहा क्यों नहीं?”……अब मैं कैसे ही कह देता?,तुम्हारे ही मुंह से किसी और के अच्छे लगने की दुहाई सुनकर….!!!
उसका ऐसा कहना कि “आप बहुत लेट थे बॉस”जैसे मुझे चुभ रहा हो…. कि क्या सच में बहुत देर हो गई…अब..!!
अब हमें भूल जाना चाहिए वो सारी पीड़ा जो मुझे हुई,कुछ ऐसे पीड़ा जैसी कभी मां राधा को हुई रही हूंगी…
अब हमें अच्छा लग रहा था मानो अपनी परिकल्पनाओ में जीना,और उसमे तुम्हे मान लेना…बिना कोई रूप दिए,बिना कोई नाम दिए…पर अब नाम दे देगे जो हमारी भी तरफ से 10 महीनों का प्रेम को “संस्कृति” नाम से अमर करेगा,रेखांकित करेगा…..!
शायद इसीलिए डर रहे होंगे गहराई से मिलने को कभी कि कहीं उस परिकल्पना में तुम्हारा रूप ना जुड़ जाए…
किंतु दिसंबर के वो तीन दिन मुझे वहां धकेल रहे थे…जहां जाने की मैंने कभी चेष्टा ही नहीं की…. मैं खुश था तुम्हे परिकल्पना मानकर…
पर अगर वो मुझे धकेल रहे थे तो आखिर किसकी तरफ,कौन था वो चेहरा…?
वो वही(संस्कृति) थी!!!चेहरा तो दिमाग में नहीं आता था…कारण कि देखा नहीं कभी…
एक बार मिले भी तो नजरे फेर ली उसी भय से जैसे ही उसने मास्क निकाला अपना…
हालांकि एक एप्रोच हम और करते हैं नवरात्रि के दिनों में,चुनरी वाली रील बनाने को लेकर…पर फिर एक अप्रत्याशित जवाब वो भी एक लंबे इंतेजार के बाद…
हम फिर रूक जाते हैं ऐसा कुछ भी बोलने को,जिससे दोस्ती,मित्रता पर कोई दाग लगे..!!!!
हालांकि एक बार हम ओपनली भी इजहार कर चुके थे कि गर्लफ्रेंड तो पॉलिटिकल से ही होगी हमारी….वैसे गर्लफ्रेंड शब्द हमको वो फील नहीं दे पता जो हमे सच में चाहिए…शायद इसलिए भी आजतक किसी को आने नहीं दिया…!
आखिरकार फिर हमने कुछ बार और एप्रोच की उसकी तरफ नए वर्ष के बाद भी,शायद extremism की तरफ बढ़ रहे थे हम उसके प्रेम में,जब वह प्रेम पीड़ा में बदल रहा था…
पर उसके आखिर जवाब ने इस बार साहस को कम ही नहीं किया,बल्कि खत्म भी कर दिया….
अब हम फिर से उसी परिकल्पित दुनिया में जाने की ओर अग्रसर होते हुए….मुश्किल था…पर मैं खुद की तसल्ली के लिए खुद से ही कहता था…उदय हो तुम,अपराजित हो तुम!!!प्रेम करते रहो,तुम्ही तो कहते हो… हमे अगर प्रेम है तो न हमे उसे देखने की जरूरत है,ना छूने की,ना बात करने की…!! हम सिर्फ इस बात पर भी तसल्ली कर सकते हैं कि जब छत पर चढ़ते हैं तो एक ही चंद्रमा देख रहे होते हैं हम दोनों,एक साथ भी कभी कभी…..✍️
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