शिव स्तुति.....(Poetry)
क्या कहूं मैं तुझको आज सखे,पर फिर भी मै निराकार कहूं....
देता है तू निश्च्छल मन सबको,क्या तुझको ही संस्कार कहूं....
प्रेम भाव से कृतज्ञपूर्ण,तुझको मैं रसों में श्रृंगार कहूं....
सौम्य-रौद्र विकराल-कराल,भाल रसाल क्या अवतार कहूं....
क्या कहूं मैं तुझको...............
आते हैं सब,जाते हैं सब,पर कुछ तो है वो तू ही है!!!!!क्या तुझको ही जगतार कहूं.....
आदि भी तू,अनंत भी तू
राम भी तू,हनुमंत भी तू
क्षुद्र भी तू है विराट भी तू,
रंक भी तू,सम्राट भी तू....क्या तुझको ही संसार कहूं..........
रोम में भी तू, पात में भी तू..
विदेह में भी तू,हर गात् में भी तू.......हर जगह है तेरा आधिपत्य,क्या तुझको ही सरकार कहूं....
प्रेम भाव से कृतज्ञपूर्ण...........रसों में श्रृंगार कहूं..
क्या कहूं मैं तुझको..........निराकार कहूं.....✍️💥
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