याद आ रही थी तेरी...

याद आ रही थी तेरी...
बहुत याद आ रही थी तेरी...
जैसे जैसे एकटक देख रहा था वह गुजरती रेलगाड़ी...
याद बढ़ती ही चली रही थी तेरी...
इसलिए नहीं कि गुजारी थी हमने कितनी ही सयाहतें एक साथ....
शायद इसलिए भी नहीं कि कि हमने कभी बनाई थी तदबीरें चल गुजरने की एक दिन इसी से ही...
पर शायद इसलिए जरूर कि पटरियां बदलते देख रहा था उसे...✍️❣️
         ~उदयराजसिंह'अपराजित💥


सयाहत*= सफर...
तदबीरें*= योजना...

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