LU के चौराहे,तुम और बारिश....(Poetry),
LU के खुशनुमा चौराहों पर गुजरते हुए हम...
कि हाथों में मेरे हांथ हो तेरा...
धीमी धीमी,बारिश की फुहारें सर से गुजरती हुई...
साथ ही तेरे होंठो से गुजरती हुई बारिश की सीप...
जो अमृत-सम हो चलती है,तेरे स्पर्श मात्र से ही...
और गुलाबनुमा भी साथ साथ, जो कि लाली को समेट चलती है अपने कोषों में...
चिढ़न भी होती है कि समेटे लिए जा रही है वो उसको तेरे अधरों को बेरंग करते हुए...
लेकिन सिहरता रहता हूं एकटक देखकर सारी क्रिया-कलापें उसकी....
Hayeee वो मधुरिम लम्हा....
एकाएक टूट जाती है वो नींद और फिर से हो जाते हैं हम तन्हां...✍️
~उदय'अपराजित💥
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