तुम और तुम्हारी स्मृतियां....(Poetry)

जब भी तुम्हारा समरण करता हूं, इंद्रियाएं सक्रिय हो चलती हैं...
हृदय गतिमान हो चलता है,घातीय वेग से...
बिना रुके,बिना थमे....अनवरत चलता ही रहता है...
एकदम निरंतर...
जैसे तुम्हें भी कोई पीड़ा हो रही हो...
कारण कि ह्रदय में अवांछनीय पीड़ा हो चलती है मेरे जब...
यह सोचकर और भी वेगीय हो चलती है वह पीड़ा.. कि तुम वहां रहते हो,जो निश्चय ही प्रभावित करेगी तुम्हे भी...
तुम संकीर्ण नहीं हो,मेरा हृदय वृहद है....
जिसमें ना सिर्फ तुम,बल्कि तुम्हारी सारी स्मृतियांऐं भी सदैव विद्यमान रहती हैं...
सिर्फ वास्तविक ही नहीं,कपोलकल्पित भी....
वह सारी उचितावस्थाएं तलाश करने लग जाता हूं...
जब जब तुम्हारी अन्योन्य स्मृतियां घेरने लग जाती हैं मुझको...
सिर्फ तलाशने में जुटा रहता हूं,वो सभी आभाषी वाहिकायें...
तुम्हारे लहराते केशो में अपनी उंगली के निसान भी...
जो पूर्णतया मिट चुके हैं अब,पर मैं निहार लेता हूं उन्हें...
बिना किसी के देखे,बिना किसी को प्रदर्शित किए...एकदम से अंजान,अनभिज्ञ,अपूर्णता से पूर्णतः पूर्ण...✍️
                         ~उदय'अपराजित💥

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