मैं और वो बस यात्रा...(Script)
मेरे बस में चढ़ते ही मैंने देखा कि वो सामने ही बैठी हुई थी,पहले कभी नहीं देखा था उसे,पर जानी पहचानी सी लग रही थी..
लहराते हुए बाल,बीच की मांग और चोटी पीछे गर्दन से घूमती हुई आगे की ओर,छोटी सी गोल बिंदी भी माथे पर...
काफी अच्छी लग रही थी वो मुझे...शायद उसे भी मैं!!!
मानो वो कह रही हो मन ही मन पास आके बैठ जाने को..उसके बगल की सीट खाली जो थी....
मैं जाके उसके पास बैठ गया बेझिझक,अब क्या...मुझे अक्सर ही चलती गाड़ी में नींद आने लग जाती है...और यहां भी वही हुआ...मेरा सर बार बार उसके कंधे पर गिर जा रहा था...
और इन कुछ सेकंडो की झपकी में ही उसकी छवि चलायमान हो चलती थी...लेकिन अचानक ही एकाएक वो मुझसे दूर की ओर खिसकी, कि एकदम ही अंदरूनी Red Blood Cells रुक से गए। मानो Nuclear Fusion हो चला हो पूरे तन मन बदन में...
मेरा आभाष गलत लगने लगा मुझको ही,मानो ऐसा सोचकर मैंने पाप सा कर दिया हो, कि खयाल खत्म भी न हुए थे ऐसे कि वो हल्का मेरी तरफ बढ़ी, कि सारे खयाल फिर से गायब....
कि गायब हो ही रहे थे खयालों से वो खयाल कि थोड़ा और खिसकी मेरी तरफ वो....
कि सब बदल गया एकाएक कि फिर से पाप लगने लगे वो खयाल जो कुछ पल के लिए आए थे अभी अभी,जो पाप-से समझने लगे थे,उनके दूर खिसकने के बाद...
कि खयालों में ही खयालों का होना रह गया,और आ गया हमारा स्टेशन... कि बस के रुकने पर मालूम हुआ और उतर लिए हम....उसको दूसरी बस लेके और आगे जाना था और हमे टैक्सी लेके घर...✍️
~उदय'अपराजित💥
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