यातायात लापरवाहियों से होने वाले दुष्परिणामों का सोदाहरण व्याख्यान....
बैठ गए बिना हेलमेट तब..
हुई 10 से 20,20 से 40...
चलते चलते देर ना लगी,हो गई 140...
थोड़ी दूर चले ही थे कि,बजी फोन की घंटी...
एक्सीलीटर कम न हुआ,बोले, हं!बोल बंटी...!?
कि आया एक विशाल ब्रेकर...,गाड़ी गई समाई...
गिरते ही सीना छल्ली हुई,टांग टूटकर आई...
भागे जिला अस्पताल पिताजी,होश ना था बच्वे को..
वहां से ट्रामा,फिर देल्ही ऐम्स,किया गया रेफर उनको...
कि सर्वस्व निछावर करने को,कसम खाई वालिद ने..
कोई प्राण बचा दे,बच्चे की...गुहार लगाई वालिद ने...
बहाने लगे तभी पैसा,अस्पतालों के गुर्गे पर..
अजानेमस्जिदों में चादर,चुनरी मां दुर्गे पर...
कि हुआ न कुछ इससे भी जब.. बिक गया खेत गाड़ी भी..
पिता के सर पर पगड़ी थी,मां पर बस एक साड़ी थी...
अब हाय निकल रही मुंह से थी,परिवार गजब का खेल रहा...
बहन कुंवारी बैठी थी,यौवन भी उसका बोल रहा...
चिंता जब लगी सताने तब,कुछ बचा नहीं है खाने को..
कैसे करूं बियाह रूप का,क्या करूं कि सुंदर बच जाए...
विकल्प नहीं है अब कोई,क्या करूं कि ब्याह अब रच जाए..
पिता की चिंता, मां की खामोशी.. बयां कर रही अवस्था थी...
कि अंत हुआ फिर अति भयावह...डॉक्टर आ गए बताने को..
कभी न ठीक होगा अब पैर,चलेगा अब लंगड़ाने को..
गाज गिरी थी पिताभार पर,अब क्या ही तत्क्षण होगा...
ब्याह नहीं अब गर होगा,प्रतिदिन समाज बस हस्सेगा...
दुर्भव होता रहा दिन पर दिन,लक्ष्मी भी हुई बोझ जब थी..
उसको भी लगा बोझ हैं हम,लगी मानने कुलक्षिन थी...
कि रात हुई वह अती भयावह,बांध दुपट्टा लटकी थी...
कि भोर हो गई कुछ क्षण में,द्वार/गेट रूप का खुला नहीं...
बाहर से थे पिता बोल रहे,जवाब अंतः से मिला नहीं...
कि गांव इकट्ठा हुआ तभी जब,तोड़ा भीम ने गेट वही...
कि हाय मुंह से निकली थी सब देख रहे थे शक्ल वही...
मां की कोंख सूनी हो गई,पिता के सर पर भार हुआ..
ऐसी अवस्था थी उन जन की,समाज ने भी लताड़ दिया..
कि लगे कोसने, कसने जब,पिता ने आपा को खो ही दिया..
मिला खाने में जहर एक दिन,गृहिणी,पुत्र को सौंप दिया..
बची थी घर में बस एक गाड़ी,जो अभी तक न बनी हुई थी..
चकनाचूर हालत थी उसकी, कि खाक हुआ था घर उनका...
राख हुआ था घर उनका...
मामूली सी लापरवाही के चलते खाक हुआ था घर उनका...✍️
~उदयराजसिंह'अपराजित
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