वो तीन दिन....

खुश था मैं,जब परिकल्पना से प्रेम हुआ था..
जब चाहते थे बात करते थे,व्यस्त होते थे,तो नहीं करते थे...

कभी पलटकर जवाब भी नहीं देती थी वो...
जो पसंद न हो मुझे,एकदम शांत...
जितने जवाब चाहिए,उतने ही जवाब...
जैसा जवाब चाहिए,वैसा ही जवाब...

खुश थी वो भी,जो शायद थी ही नहीं...
खुश थे हम भी,जो शायद सिर्फ उसके लिए थे...

हम दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण होकर भी किसी वास्तविकता से मुहब्बत कर बैठे...
उदास रहने लगी वो,फिर बात ही होना बंद हो गई उस परिकल्पना से...
कि दूर होती चली गई वो...
उन 3 दिनों में मानो कोसो दूर जा चुकी हो...
जिसे पाना मुश्किल लग रहा अब...
वैसे वो तीन दिन,तीन मुलाकातों के थे,जो अलग अलग समय पर अनायास ही हुए..

क्यों ही आएगी वो परिकल्पना,किस वफा की उम्मीद से...
वो कल्पना फिर से चाहिए मुझे...
शायद उसका विश्वास खत्म,जो अटूट था हम दोनों के बीच...

कभी उसने मुझसे क्यों" क्या" कैसे" नहीं पूछा....
हम ही बता दिया करते थे अपने ही मन से,जब जब शांत होते थे,व्यस्तता के दौर में....

वास्तविकता ज्यादा दिन नहीं टिकती,मालूम था हमें....
और वही हुआ,सिर्फ 3 दिन...सिर्फ तीन मुलाकातें...

वो आकर्षण मानों महीनों पुराना हो...
वैसे था तो सालों पुराना,पर मुझे नहीं...
आखिर ले ही लिया आकर्षण ने भी बदला,और भारी पड़ गया मुझपर ही...
खुद में मस्त रहने वाला लड़का आज खुद के विरोधाभास में जी रहा था...
उसकी वास्तविकता किसी और की हो चुकी थी,जो शायद आठ महीनों से उसकी ही थी,बिना उसके जाने...
और जब वो गया उस वास्तविकता को वास्तविकता दिखाने,बहुत देर हो चुकी थी,ये अल्फाज भी उसी वास्तविकता के थे...
हमारी परिकल्पना भी दूर जा चुकी थी मुझसे,शायद बहुत दूर...और बहुत दूर...
और वास्तविकता भी...
हम उस वास्तविकता के सिर्फ 3 दिन के लिए रहे,तीन मुलाकातों के लिए रहे,पर वो?शायद आंशिक रूप से उन तीन मुलाकातों में....
और एक मुलाकात जो आखिरी होने वाली थी,उसके बाद पूर्ण रूप से किसी और की...
मैं मिला भी ये जानते हुए,ये आखिरी है,इस उम्मीद से कि शायद....................
एक खुशी भी थी कि वास्तविकता एक बार और मिल रही है...साथ में दुख भी कि,आखिरी बार है ये...
उसके बाद फिर कभी नहीं....
अकेले हो रहे थे हम,ना वास्तविकता,ना परिकल्पना....
पहली बार किसी वास्तविकता पर कुछ लिखने का जी कर रहा था..
भला कैसे ही उस परिकल्पना में ईर्ष्या ना आती...

मजबूर थी वो...
हमसे दूर ही नहीं,किसी के नजदीक थी वो...
बहुत मुश्किल होता है,किसी को छोड़ पाना...
वो भी तब,जब उसने कंधा दिया हो,जब जब दुनिया अकेला छोड़ती है..
हमें ही देख लो...
कैसे भुला दूं,जो वास्तव में हैं हमारे साथ..इस अवस्था में भी...
जिनका हमारे हाथों में हांथ होना,जैसे कोई छोटे बच्चे को समझा रहा हो...
दुनिया है,होता है,जीना है,चलना है, थमना कतई नहीं है...
परिकल्पना शायद हमारे हालत और हालात से वाकिफ नहीं थी,हालांकि उसने पूछा कई बार...खुश रहने को...
अनायास ही,उसका ध्यान आने लगता था...
कि क्या कर दिए हम,इन तीन दिन में,तीन मुलाकातों में...
वो भी तब जब सब खत्म हो चुका था...
सब खत्म,एकदम तहस नहस....
शायद प्रेम ऐसा ही होता है...
उसके आठ महीने के इंतजार को तीन दिन में ही भर दिया....
अप्रैल से दिसंबर तक का इंतजार!!!,दिसंबर भी शायद नहीं था हमारा...सब तीन दिन में खत्म...
पर वो संतुष्टि?,शायद नहीं,देर जो हो गई थी...
आगे जा चुकी थी वो...
इंतजार छोड़कर,इन सबसे निकलकर...
वो आठ अप्रैल को उस वास्तविकता का पहला व्हाट्सएप संदेश,अब भी सहेज कर रखा है...पर तब वो वास्तविकता नहीं थी हमारी...शायद आज से तीन दिन पहले तक भी...
  जब तक कल्पनाएं अधूरी ना रह जाए,वो प्रेम ही कैसा...
शायद प्रेम ऐसा ही होता है...
प्रेम,प्रेम, प्रेम......जीवित रहता है...
शून्य रहता है, शाक्त रहता है...
प्रेम प्रेम रहता है...✍️
                             ~उदय'अपराजित💥

Comments

  1. Pyaar kijiye behisaab kijiye par chahat na rakhiye vapas pane ki... Aur kbhi khud k na bhuliye...❤❤ from a person who wants you to be happy.. people come and go... UdayRajSingh should must witness life..

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    1. Bhaiya💫🌚🤝
      You means alot forme💕💜

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