सलीके सीख कर तेरे,सलीके भूल जाएंगे...(Poetry)
सुना है,तुम्हें साबूदाने की खीर बहुत पसंद है जाना...
तुम गैरों से ही सही,खा रही हो ना।..
कामयाब हो जाओ,तो हमे भी बता देना...
चादर चढ़ा दूंगा किसी अजान ए मस्जिद में...
और ये जो सलीके नहीं आते मुझे, तुझको रिझाने के
..गैरों को ही सही,पर सलीके सिखा रही हो ना....
वैसे जो सीखे हैं भी मैंने आज तलक तुझसे,सिखाए हैं तुम्हे भी कुछ...
मेरा हामी को "हूं" में ही कह देना,hnn की जगह अक्सर...
हुआ था तेरे लिए जब मैं,सदा से ही मयस्सर...
सलीके सीख कर तेरे,सलीके भूल जाएंगे...
सताया जिस कदर तुमने,हम ना सताएंगे...
खुशी से राहगीरों की तरह,अब राह काटो तुम...
किसी कालम के जैसे हम तुम्हे फिर अब न टोकेंगे...
मगर जब याद आ जाए,पलटकर मत देखना तुम...
कोई हारा हुआ आशिक बेचैन बैठा हो,तुझे देखकर फिर वैसे,अब तो रो ही देंगे हम...
पतंगों की डोर जो हूं,उसे तुम काट देते हो....
जिन्हे उड़ना होता है,हमें फिर जोड़ देते हैं....
कि लगी चिंगारी हूं मैं,किसी आगोश में जाके...
निहारो अब तलक मुझको,किसी मदहोश में आके...
शराबी आंख कर लो तुम,मगर जब भूल जाना तुम...
खुशी से सारे जख्मों पर मेरे मरहम लगाना तुम...
कि जो बोए थे तुमने रिश्ते,उन्हें हम अब काट लेंगे हम....
दिए जो जख्म हैं तुमने,उन्हें अब बांट लेगे हम...
मिले ना गर तुम्हें मरहम, फिर नमक ही काफी है...
अगर ये भी न दे सको तो अब फिर नाइंसाफी है...
कि तुम्हें अब याद आती है,मालूम है मुझको...
यूं जो मेरे ही अपनों से,छुपछुप के बातें करते हो...
तुम्हारे हर वही अपने,मेरे भी हैं अब...
सिवाय बस तेरे सब हैं,तेरी कसमें हैं पर अब...
जो वादे थे तुम्हारे वो,जिन्हे हम सच मान बैठे...
जरा सी फिक्र भी न की,कभी ये होंगे भी झूठे...
और अब तो हिचकी भी आना बंद हो गई जाना...
जब से रकीब की बाहों को तुमने था थामा...
गले लगकर रोई थी जब,वो दिन याद है मुझको...
मुलाकात आखिरी थी,पर बहुत भाई थी मुझको...
सताती है अभी भी वही याद,जब जब भी आती है...
गर फरमाइश में मांगूं खुदा से,तो आजमाइश आती है...
और तेरा वो आंसू जब गिरा था मेरे कंधे पर...
बदन में आग सी जलती,मानों दिल गिरा हो पत्थर पर..
हुआ था चकनाचूर उस दिन,अब तो राख है साहिल...
जरा सी देर और होती तो न होते फिर जीने के काबिल...
मगर अफसोस है न मुझको,कारण कि वो एक ख्वाब बस ही था...
सुबह जब हुई थी मेरी,बाहर धूप,मैं बिस्तर पर ही था...
~उदय'अपराजित💥
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और सुना है,अब तुम्हारा वहां भी दिल नहीं लगता..
ठीक वैसे ही,रकीब को भी सता रही हो ना....
और एक वक्त था,जब तुम परेशां हुए थे हमारी गजलों से...
अब अगर एक हर्फ भी दिख जाए हमारा,उसे तुम चूम लेते हो....
सब खैरियत है ना...
~उदय'अपराजित
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और अब फिर से बदल बदल के पुरानी डीपियां लगाने लगे हो तुम...
सुना है,अब फिर से कोशिश-ए-बहकाने में लगे हो तुम..
और ये जो छुप छुप के गजलें पढ़ते हो हमारी...
वो हमे सब बता देती हैं...
जितना पढ़ते हो,आंसुओं से मिटाते चलते हो तुम...
तुम्हारी आंखें सब जता देती हैं....
~उदय'अपराजित
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Arrey मुहब्बत थी तुम हमारी...
तुमने हमें आम समझ लिया,कोई फरेबी थोड़ी हूं...
और ये जो तुम,फिर से लौटकर आ रहे हो ना...
तुम्हे फिर से अपना लूं मैं,कोई बीजेपी थोड़ी हूं...
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✍️अधूरी
अहतजाज,मखलफत प्रतिरोध
चिंगारी
कालम - खंभा
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