अधूरी शायरी
1.और ये गुरूर किसके लिए,लिए फिरते हो तुम। .....
लंगड़ा लंगड़ा के चलते हो,की गिर गिर pdte हो तुम...
और निहार दूं ऊपर, सूरज का ज्वलंत भी शर्मा जाए....
चांद को भी जी भर के देख लूं,तो वो हमारा हो जाए....
और ये धरती ये अंबर, सितारे,सब कुछ हमारे हैं...
कह दूं तो सुबह को रात,रात को सवेरा हो जाए...
अधूरा
2.कुछ चीजें इस दुनिया में इंस्टाग्राम रील की तरह होती हैं..
Hide का ऑप्शन ही नहीं होता...✍️
3.याद करेगा ये दौर क्या खूब हमको...
नसीबन,आदतन,मजलूमन
हम भी गिरे हैं,हम भी टकराए हैं...
हम भी पड़े हैं,
रो दिए,पा लिए,फिर खो दिए..
फिर हम भी पाने को बढ़कर,फिर खो दिए उसका खोना देखकर...
याद करेगा ये दौर भी क्या खूब हमको...
हम भी रो पड़े हैं,उसका हमारे लिए रोना देखकर...✍️♥️
~उदययय💥
4.मैं तुम्हारे झुमके पर लिखूं,और हूबहू उसकी मोती की भांति एक मोटी हमारी आंख से ना गिरे उस "लिखे हुए झुमके" पर....
शायद ही हो ऐसा....
मैं किसी वियोग में अन्योन्य प्रयोग करूं,तुम्हें अपने पास होने का....
झूठा ही सही,पर करूं कि संयोग से कोई प्रत्याशित ना हो जाए,तो कैसा.....
5.जवाब बहुत उठ रहे हैं हमारे पास...
आदतन कोई सवाल पूछ लोगे क्या...
सुनो,मुझे तुमसे कुछ कहकर रो देना है अब.....
एक दफा,मेरा हाल पूछ लोगे क्या...
यूं तो फिर से टोककर तुम्हें रोकना तो नहीं चाहते हम...
पर अब आखिर में एक एहसान करोगे क्या...
मैं कगार ए सरहद पे खड़ा हूं...
तुम एक बारी "कैसे हो" हमसे पूछ लोगे क्या..
/तुम अपनी सारी यादें हमारे नाम करोगे क्या..✍️
~उदय'अपराजित
6.अच्छा एक बात पूछता हूं,बताओगी क्या?
साबूदाने की खीर बनाई है मैंने,खाओगी क्या?
ये दिन,सप्ताह,महीने,बरस,क्या ही होता है...
सत्तर फेरे लेकर,सात जन्म बिताने है हमको तुम्हारे साथ,बोलो बिताओगी/निभाओगी क्या?
~उदय'अपराजित
7. तू इतनी भी वृहद नहीं, कि तेरी भक्ति मैं कर दूं...
कि तू इतनी संकीर्ण नहीं,तुझको एक पंक्ति में मैं लिख दूं...✍️
~उदययय💥
अधूरी
8.बिना बात के ही मैसेज कर देना तो इश्क है...
फिर बिना उनके देखे ही डिलीट भी कर देना,तो पागलपन है...
यूं ही उसपर कविता लिख देना,तो इश्क है...
पर अश्कों से अपने वो कविता मिटा देना,तो पागलपन है...
बात बात पे पागल कह देना उसको,तो इश्क है...
और कहकर उसको ख़ुद पागल हो जाना,तो पागलपन है...
~उदययय💥
अधूरी...
9. याद है जब शब्दों के खेल में उलझाया था तुमको...
इमोजी से ही सही,पर रुलाया था तुमको...
और ये जो अब असलियत में रुला रहे हो तुम...
पास हो तो मेरे,पर कितनी ही दूर जा रहे हो तुम...
आभास भी नहीं है तुम्हें,कितनी कविताएं रच रहे हो तुम....
और आ जाती है फिर तुम्हारी याद, कि कविता अधूरी रह जाती है...
उन्हीं यादों में फिर वो जिंदगानी पूरी हो जाती है...
अधूरी
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