चक्र,वक्त,दुविधा...
कभी पुराने पाने की खोज में नया नहीं मिल पाता...
कभी नए पाने की जल्दबाजी में पुराने छूट जाते हैं...
कभी नए पुराने,पुराने नए की दुविधा में पड़कर खुद को हारते रहोगे..
और खो दोगे नया भी,तब पुराना भी नहीं होगा साथ...कारण कि वो भी नए की ही वजह से था तुम्हारे पास...
अब तुम फिर से खुद को खोते चले जाओगे,कारण कि तुमने चुन क्यों लिया...
तुम्हें चलते रहना चाहिए था,जैसे जैसे चल रहे थे तुम...
क्या चुनना सबसे बड़ी गलती है...
जब कुछ नहीं बचा होगा,तब तुम्हारे पास जल्दबाजी भी नहीं होगी,और ना वक्त की कमी...
तुम्हारे पास पड़ा अन्योन्य वक्त फिर से ऐसी अवस्थाओं को जन्म देगा,और वक्त बढ़ता रहेगा तुम्हारे पास दुविधाओं के साथ,जैसे जैसे चीजें छूटेंगी....
ये चक्र चलता रहेगा,और चलता रहेगा तब तक...जब तक इस चक्रीय दुनिया में तुम मिल नहीं जाते...
इससे पहले ही इससे निकाल लो खुद को तो....किसी तीसरे की जरूरत पड़ती है...साथ ही इस बात का भी खयाल करना पड़ता है कि वो तीसरा है कौन...अगर वो समाधान न दे सका..तो इस बार टूटे हुए तुम पिसकर रह जाओगे...
अब यहां भी चुनाव,तीसरे के लिए......!!!!!
शायद चुनाव ही जिंदगी को कठिन बनाता है....और आसान भी....विकल्प मायने नहीं रखता, कि तुम्हारे पास कितने हैं...!!!
~उदय'अपराजित
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