अनजान हो क्या तुम,नादान हो क्या तुम...(Poetry)

अनजान हो क्या तुम,नादान हो क्या तुम...
मिटे ना मिट सके,हर्फों का वो फरमान हो क्या तुम...
हैवान हो क्या तुम,शैतान हो क्या तुम...
तुम्हारी मान लूं सारी,भगवान हो क्या तुम...


हमारा दिल तो कर देता है नजरंदास अब तुमको...
हमारी फितरत ऐसी हैं, कि दिल बस मानता नहीं...
कि पलटकर बोल देता है,जब भी पूछते हो तुम...
गंवारा है नहीं फिर भी,जो कर चुके हो तुम...

मिलेगी ना तुम्हें माफी,श्राप फिर भी न देता हूं...
रहो तुम खुश जहां भी हो,उम्मीद करता हूं...
छोड़ देते मगरुर मुझको,तो अब क्या ही बात है...
मशगूल करकर छोड़ना,क्या अब ठीक बात है..
मिलेगा ना सुकूं तुमको,जो पाई थी हमारे से...
उदय है खुश,उदय था खुश,रहेगा खुश मगर उस बिन...
याद है चेहरा,जब आई थी सामने से...
हंसते हंसते रो दी थी,बस हल्का डांटने से...
फिर नजरे टकराई थी,फिर गले लगाई थी...
कि मिट गया तनिक क्षण में, कि सब खाक कर दिए तुम...
राख कर दिए तुम,
जहर घोल कर तुम,कैसे जी पाओगी...
उपहास के दंश में तुम कैसे रह पाओगी...,
वादा है मेरा,तुम ना जी पाओगी...
तुम ना जी पाओगी...✍️
                              ~उदय'अपराजित💥

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