शाम,क्रिकेट,रिंगटोन और वो तस्वीर...(Script)
शाम का वक्त था,घर के लिए निकलना भी था...क्रिकेट खेलते खेलते थक भी चुके थे...तभी फोन में घंटी बजती है.."तुझे अपना बनाने का जुनून,सर पे है,सर पे है..."....
रिसीव करते ही,एक आवाज!!...,जानी पहचानी थी हालांकि,इसलिए पूछा भी नहीं, कि कौन हो तुम!?....
उसका अचानक से यूं फोन कर देना,किसी संयोग से कम तो नहीं था....खैर कुछ ही मिनटों में वो बुरा न मानने को कहकर मुझसे कुछ कहने को कहती है...अब भला कौन ही कहेगा,कि नहीं रहने दो... मैं बुरा मान जाऊंगा....!खैर....
उसके शब्द थे I L_o_v_e Y_o_u , ठीक ऐसे ही टुकड़ों में बोला उसने सहमकर,शायद सरमाकर भी.....,बदले में मुझसे कुछ जवाब में ना पाना उसे संदेह की स्थिति में डाल रहा था....हालांकि मुझे मालूम था पिछले साल भर से ही,जो भी कुछ वो सोच रही थी,महसूस कर रही थी,पिछले दो सालों से...उसके ही अपनों ने बताया था मुझे,पर मैंने नजरंदाज किया इसको,कारण कि शायद मैं भी पसंद करता था उसे...
उसका हमारी तस्वीर को सिरहाने रखना भी कहीं न कहीं हमें आत्मिक कर रहा था,और मैंने आत्मिक रहने की ही ठानी...
पर उस दिन हमें उसको कोई जवाब न देना,आखिर क्या ही था ये?ऐसा नहीं कि मुझे उससे कोई गुरेज था,या फिर प्यार ही!!!....ऐसा भी नहीं था, कि हमे किसी और से प्यार था...!!
बात शायद थी कि अब हम शायद ही सामने से मिलेंगे कभी...
कारण कि 10th क्लास के एग्जाम्स खत्म हुए थे,रिजल्ट आ चुका था...अब मुझे आगे की पढ़ाई लखनऊ से करनी थी...और उसकी अगली की सुबह 4 बजे की जनता एक्सप्रेस से निकलना भी था...
ठीक वैसा ही हुआ,मैं वहां से निकल लिया,अपना मैट्रिक्स स्कूल छोड़कर......,कहीं दूर,लखनऊ की ओर....
उसके बाद भी बात हुई,पर बमुश्किल 3 से 4 बार ही हुई होगी, कि एकाकेक सिम लॉक होने की वजह से बदल जाता वक्त, उस नंबर के साथ ही....
कि अचानक ही 1 साल 3 महीने बाद मालूम होता है कुछ ऐसा कि जिसके बमुश्किल मिलने की उम्मीद थी,अब कभी नहीं मिलेगी!"शायद" अब "यकीन" में बदल चुका था,पर बिलकुल इसके उलट...जहां हम शायद ही मिलने की बाते करते थे दोनों ही,वहीं अब यकीनन "कभी न मिलेंगे",सोच रहे थे खुद ही,अकेले ही!!!!...अब वो इस दुनिया में थी या नहीं,क्या ही करना....बस जो हो रहा था,सिर्फ सुन सकते थे...(अब नहीं पढ़ो बस खत्म टाटा Bye Bye)
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