एकांत व अकेलापन...(Poetry)

अकेलापन एक मानसिक विच्छेद है हृदय से....
जिसमें दोनों की बारंबारताएं अलग अलग दिशा की ओर जाती हुई प्रतीत होती हैं...
मानसिक अवधारणा और हृदय के विचार एक समान तल पर न होकर...
कहीं सुदूर जाते हुए बहते चले जाते हैं...

एकांत एक सौभाग्य है...
अधिकांश लोग एकांत ढूंढना चाहते हैं,पर उन्हें नहीं मिल पाता...
जो एकांत में रहते हैं,उन्हें चाहिए भीड़...!?
ये भी एक प्रश्नचिन्ह उत्पन्न करता है....

वैसे सांसारिकता में कदम रखते ही एकांत का होना संभव नहीं है...
आप अपने चारों ओर देखेंगे तो पाएंगे...
कि कुछ हरे भरे पेड़,या बसंत की पीली फुलवारी....
या फिर पतझड़ की सूखी पत्तियां....
कुछ न कुछ मिलेगा जिससे जुड़ाव होना तय हैं...
और आप अपना साथी ढूंढ पाएंगे...
इस अकेलेपन को चीरते हुए...
जहां भीड़ तो बहुत है,पर उतनी ही अकेली ये दुनिया...

एकांत अकेलेपन में उतना ही अंतर है...
जितना बसंत और फागुन में....
सिर्फ और सिर्फ आधे वर्ष का...
जिस दिन ये अंतर बढ़ते हुए पूरा हो गया...
उस दिन दोनों बसंत होंगे...
या दोनो फागुन...✍️🥀
                       ~उदय'अपराजित

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