कविताएं...व्यर्थ नहीं जाने दूंगा...
ये कविताएं,हं हं ये कविताएं...
व्यर्थ नहीं जाने दूंगा...
एक दिन,हं हं एक दिन...
ये सारी कविताएं कहूंगा तुमसे...
तुम सुन रही होगी उन्हें...
तुमसे ही कहूंगा,हं हं तुमसे ही...
जिसे शायद हमने देखा नहीं अभी तक...
कोई तो होगा,जो हमारी शादगी पे मरता होगा...
कोई तो होगा हमारे भी इंतजार में....
जो आकर्षित ही नहीं,समर्पित भी होगा...
हम भी उसपर...किसी घातीय वेग से...
कारण कि आकर्षण क्षणिक होता है...
समर्पण अनंत...
किसी खगोलविज्ञान से भी अनंत..
जिसका समुचित चलचित्र वैज्ञानिक भी ना ज्ञात कर पाए...
कोई तो होगा,किसी पुनर्नवा से भी श्वेत...
गुणों से श्वेत...
जो न सिर्फ हृदय को बल्कि कलेवर के हर एक अंग को अंगीकृत करता होगा...
जिसकी वाणी में सरसता बहती होगी...
गंगा से भी पवित्र...
यूं तो गंगा से पवित्र नहीं होता कुछ...
पर तुम होगी...!!!
गंगा में स्नान करने के तुरंत बाद की गंगा की पवित्रता लिए हुए...और तुम्हारी भी उसमें समाहित....
तब हो जाओगी,गंगा से भी पवित्र....
हं हं हो जाओगी.....
वो कभी तो होगा...
जब हम कहेंगे...
हमारा इंतजार शून्य हो गया...
तब हम अनंत हो चलेंगे...
हमारी इन्हीं अनंत कविताओं के साथ...
जो तुम्हारा ही वर्णन करती रहती हैं...
फिर कुछ और भी होगा अनंत...
हमारे युग्म का अंत होगा अनंत....✍️
~उदय'अपराजित
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