आज भी अपना फोन खोजने लगूं...तो ना जाने कितनी ही अधूरी कविताएं...

आज भी अपना फोन खोजने लगूं...
तो ना जाने कितनी ही अधूरी कविताएं...
निकल आएंगी....
जो अधूरी रह गई,जब जब तुम्हारी याद आ गई....
कविता लिखते हुए....

जब तुम हमारी भावनाओं से भी दूर होती हो...
तभी हांथ चलायमान रहते हैं....
तुम्हारी स्मृति मात्र से ही मानों...
सब शिथिल सा हो जाता है...
सिवाय वक्त के...

वो भी शिथिल हो जाए..
गर वो ढला हो उस मिट्टी से...
जिस मिट्टी से हम...


उसका थमना,गतिमान रहना...
सब बराबर ही है...
क्योंकि,उसके चलने से ही तुम्हारी स्मृतियां हमसे दूर हो पाती हैं...
यदि समय ही रुक जाए,तो तुम्हारी वो स्मृतियां भी वहीं पर कैद हो जाएंगी...
और फिर शायद कभी न निकलें...
कारण कि समय ना रहने पर,चीजे स्थिर रहती हैं...
एकदम स्थिर...
                ~उदय अपराजित

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