तुम हमारी कविताओं को पढ़ते हो...मानों तुम हमें पढ़ लेते हो...
तुम हमारी कविताओं को पढ़ते हो...
मानों तुम हमें पढ़ लेते हो...
जब तुम उनपर मुस्कुरा देते हो यूं ही...
तो मानो,हम कारण बन जाते हैं तुम्हारी इस यौवन मुस्कुराहट की....
जो क्षणिक होती चली जा रही है आजकल...बढ़ते उपकर्णीय दौर में...
पर निश्चिंत रहना तुम...
इन्हीं उपकरणों में हम मिल जाया करेंगे...
तुम्हारे स्क्रॉल करते करते...
जब तुम्हारे अपने बहुत ज्यादा हो चुके होंगे...
जब तुम हमे भूल चुके होगे...
तब भी हम दिख जाया करेंगे...
तुम्हारे स्क्रॉल करते करते...
पर वो हम नहीं होंगे...
होंगी सिर्फ हमारे पंक्तियां...
जो कोई और प्रकाशित कर रहा होगा...
अपने अपने माध्यम से...
सिर्फ हमारा नाम देकर...
पर जब तुम पढ़ोगी...
मैं समझ जाऊंगा...
कारण कि तुम उनमें से एक हो...
जिसने 21वीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआती दौर में भी पढ़ा है हमको....
जो कि पहला चतुर्थांस है दशक का...और उसमें भी शुरुआत दौर....
इसलिए भी समझ जाऊंगा...
कि पढ़ लिया होगा तुमने मुझको...
जो मैंने कहा होगा...
हजारों मील दूर बैठे हुए कहीं पर...
निश्चिंत रहना तुम...
तुम पढ़ती रहोगी हमको..
मैं लिखता रहूंगा खुद को...
परोक्ष रूप से ही सही...
पर पढ़ती रहोगी...मुझको..
और उसमें भी ढूंढते हुए खुद को...✍️
~उदय'अपराजित
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