हम कितने खुशनसीब हैं न..Heisenberg.(Poetry)

हम कितने खुशनसीब हैं न...
कि एक दूसरे का तय करकर भी हम आपस में कुछ तय नहीं कर सके..
एक दोनों में मिलकर भी हम,हम ना हो सके...
या समझे इसे कोई दुर्भाग्य...
कि तुम,तुम ही रहे... मैं मैं ही रहा...
तुम्हें कहूं अंतरिक्ष में खोई हुई कोई आकाशगंगा...
या हो कोई हाईजेनबेर्ग के अनिश्चितता का सिद्धांत...
जिसमे "डेल्टा एक्स" रहा हमारे हृदय की स्थिरता की अनिश्चितता...
और "डेल्टा पी" हमारे प्रेम के बहाव की....

जिनका गुणांक हमेशा भारी रहे हमारे उसूल और सिद्धांतों के प्लैंक नियातंक से(>h/4π)...
या कभी कभी बराबर भी...!!

सब कुछ अनिश्चित ही रहा हमारे बीच अंत तक...
जो नियातंक निश्चित हुआ करता है हर जगह...
उसे भी अनिश्चित कर दिया "पाई" ने जुड़कर उस भिन्न का भाजक बनकर...
जो खुद में ही एक अनिश्चित मान है....!!!...✍️

Comments

Popular posts from this blog

सुनो.....(Poetry)

भारतीय संस्कृति और जाति प्रथा...

mei bfames