वो नदी थी...हमने चुना किनारा बने रहना...(Poetry)
वो नदी थी...
हमने चुना किनारा बने रहना...
वो बहती हुई निकलती चली गई...
हमने चुना उसके दोनों ओर थमे रहना..
वो जाकर किसी समंदर में गिरी...
हम वहां भी बने उसका किनारा...
उसकी लहरे आईं कई मर्तबा फिर किनारे के ओर...
और फिर वापस हो गईं...
किनारे ने स्वीकारने से मना कर दिया....
तब भी हमने चुना...
किनारा बने रहना...
उसी का किनारा बने रहना...✍️🥀
~उदय'अपराजित🥀
Comments
Post a Comment