तबस्सुम...(Poetry)

और पा लेता हूं जब जब तुमको नजरों से,तब तब हम तो गुम सुम मानो उठते हैं...

और झलक तुम्हारी भर से ही अब तो मानो, जाम हमारे होंठ तबस्सुम उठते हैं..
और ये अल्फाजों की कसमें खाते फिरते हैं...
लिक्खे मेरे हरफों पे यूं जान छिड़कते फिरते हैं...

भूले नहीं हैं वो मुझको,अब मालूम है.....
तभी तो हर इबादत में वो जिक्र हमारा करते हैं....

सीधे साधे हंसते गाते सड़कों पर....
यूं देख मुझे जो बालों को संवरने लगते हैं...

और झलक तुम्हारी भर से ही मानो, जाम हमारे होंठ तबस्सुम उठते हैं..@उदयराजसिंह💓🥀

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