तुम्हारा दिया हुआ फूल रखा है हमारे पास...

तुम्हारा दिया हुआ फूल रखा है हमारे पास...
400 पन्नो वाली किताब के २००वें नंबर पर....
एकदम बीचोबीच....
ठीक वैसे ही,जैसे हालात में हम मिले थे...
आखिरी मुलाकात में...

आखिरी बार,जब मैंने तुम्हें चुम्बन किया था...
माथे पे...
जब तुमने आंखें बंद कर ली थी...
और तुमने!!,तुमने तो पलटकर होंठ ही चूम लिए थे...
बावजूद इसके कि पता होते हुए, कि अब यह चुम्बन विरह-प्रक्रिया का आखिरी पड़ाव होगा....
पर क्या मालूम था, कि फिर मिलेंगे कभी,उसी अवस्था में...
एक नहीं,दो नहीं,सात बार....
और आज फिर आठवीं बार देखा था तुम्हारा ख्वाब...
तुम्हारे जाने के बाद....

पहला ख्वाब तो तीसरे ही दिन देख लिया था,जिसमें तुम माथे पे छोटी सी बिंदी और कानों में लंबे झुमके जो घुंघराले बालों में ऐसे चमक रहे थे जैसे आकाशगंगा में शुक्र ग्रह की भी चमक फीकी पड़ गई हो....

हं ये सच है, कि पहला स्वप्न मैंने तीसरे दिन देखा क्योंकि दो दिनों तक नींद ही नहीं आई...
और जगती हुई परिकल्पनाओं को शायद "खयाल" कहते हैं...,ख्वाब नहीं....
पर मुझे पीड़ा कतई नहीं है,और ना ही इंतजार...
क्योंकि चौबीस घंटों का आधा हिस्सा मैं तुम्हारे साथ गुजार लेता हूं...
और बचा हुआ आधा हिस्सा उन पर कविता लिखते हुए...✍️❤️
                               ~उदयराजसिंह'अपराजित❤️

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