मुझे २२ वर्ष की लड़की ने सिखाया पुराने घावों को भरना..

मुझे २२ वर्ष की लड़की ने सिखाया पुराने घावों को भरना..
प्रेम से,प्रेम में,चंद दिनों में ही पुराने घावों को भरना...
और फिर कुछ ही पल में उनको नासूर कर देना...
वैसे इतना तो मैं भी कर सकता था कि उन नासूर को झट के अलग किया जा सके..
पर जिन जिन व्यथा में,पीड़ा में उसका योगदान रहा हो...
उसी व्यथा को अलग कर देना खुद से, एक दूसरी व्यथा से कम नहीं होगा....
जो उससे भी गहरी होगी...


उस लड़की ने सिखाया,नजरंदाज करना...
जो कभी न हो सका...शायद कभी भी मुझसे....
और जिसे सीखकर भी कभी न आजमा सकना...
किसी दुविधा से कम नहीं रहा होगा...
पर फिर भी मैंने उसे किया...स्नेह भरा अंदाज...
इतना ही नहीं,उसने ही सिखाया...
औरों की परवाह करना...
अतिशय परवाह करना...
तब तक के लिए...
जब तक प्रवाहित होते रहे हों उसके डायनामिक्स...

वो लड़की,जिसने सिखाया मुझे खुद का ध्यान रखना,खुद के लिए...
और सिखाई समय की कीमत,जो नहीं दी जा सकती किसी और को...किसी और की खुशी के लिए...
उसने ही सिखाया...लोग होते हैं सीमांत(temeparrary)
कोई नहीं रहता एक अरसे के लिए...
रह जाती हैं सिर्फ यादें...
वो भी किसी एक के पास...

शायद न सीख पाता विरक्ति इस दुनिया की...उसके बिना...
और अचानक से किसी पर भरोसा करना तो आता ही नहीं था...
उसने बदला इस शंका* को...यकीन में,यथार्थ में...
बताकर कि कैसे तोड़ते हैं विश्वास,आशा,उम्मीद,...
सांझ को ही किए गए कमिटमेंट...
सुबह को उनका तोड़ जाना...
किसी कपोलकल्पित कहानी से कम तो नहीं होगी....
जो रची गई सांझ पहर से लेके सुबह तक...
उन कल्पनाओं के टूटने तक...

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