मैंने भी चाहा था....
मैंने भी चाहा था...
कि तुम किसी कारण से बिछड़ जाओ हमसे...
और हो ले किसी के संग...
मुझे भुलाकर शायद...
फिर हम मिलें अचानक ही किसी मोड़ पर...
उसे उसके प्रेमी के बाहों में बाहें पड़ी हों जैसे...
देखने को....
उसका मुझे देखकर मायूस हो जाना..
और हमारा अचानक उसके सामने रुक सा जाना..
हमारा रुकना जैसे समय का ही थम जाना...
और फिर मेरा मुस्कुराना जैसे कोई कुमुदिनी के फूल पर भंवरा बैठता हो...
उसका भी मुस्कुरा देना मुझे देखकर...
और चली जाना वहां से...
अचानक ही नींद खुलना और पाना कि...
बाहर सुनहरी धूप की किरणे हमारे सर पर सीधी गिर रही हैं...
जो कर रहीं हैं बालों को भी सुनहरा...
और उसका फिर से सातवीं बार ख्वाबों में आना...
जो जा चुकी है इस जहान से ही...
उसके हादसों के दौर में एक आखिरी हादसे में.....
~उदय'अपराजित♥️
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