हामी में हामी गर उसके हो जाती...(Poetry)
हामी में हामी गर उसके हो जाती...
दुनिया फिर तो आधी आधी हो जाती..
आधे में होते अधूरे आशिक सारे..
आधे में हमारी जवानी हो जाती..
थोड़ी सी मेरी मनमानी हो जाती...
उसमे उसकी भी थोरी सी शैतानी हो जाती ..
टिकटों वाली याद कहानी हो जाती...
नोटों और रुमालों सी एक और निशानी हो जाती...♥️
हामी में हामी गर उसके हो जाती...
पर परेशां हो गया था मैं..
कि दिल क्यों तोड़ा था उसने...
मिन्नतें की हजारों हर्फ...
पर झूठ नहीं छोड़ा उसने...
फोन रखती थी,और कहती थी,अब फोन नहीं रखते...
मैने भी कह दिया,हम औरों के फोन पे बात भी नहीं करते...
पूछा दफा पचास तभी,ना मन हो तो यूं ही रुकते हैं...
लटका के रखना था उसको...ना तो "ना" ही की,ना ही आगे को बढ़ते हैं...
वो कहती रहती थी,अब तुम जैसा चाहोगे,वैसा ही होगा...
सब तो है तुम्हारा ही,अब आखिर कैसा होगा...
मैं भी बातें सुनकर हां में हां कर ही देता था...
पर समेट न सकी वो मुझको तब,जरूरत में जिसको मैंने समेटा था...
भर लेती बाहों में गर जब जल रहा था दिल अपना...
रातों में जग जाते थे,जब जब आता था उसका सपना...
अब एक बात उससे भी पूछ ही लेता हूं...
क्या याद है,मेरे हाथों से तुम्हारी कमर को छूना...
वैसे सपने तो तुमने भी देखे थे...
रातें तो तुमने भी जग डालीं...
फिर क्या हुआ,आखिर ऐसा कि मुझसे ही फरेब कर डाली...
हुए दो एक,फिर कुछ चार,अब कितना समय चाहिए था...
हमारे जख्म सिलना था,या कोई और भी चाहिए था...
चलो अब किरदार बदल हम लेते हैं...
तुम को सच,खुद को झूठ हम कहते हैं...
थोड़ा थोड़ा ककरकरके इंतजार महीनों का लेके...
फिर आखिर में हम फिर वैसे ही तुमको, तब भी ही दिलासा देते हैं..
अब किरदार बदल हम लेते हैं...
तुम को मैं, मैं को तुम लिखते हैं...
और अब फिर से हांथ जेब में रखकर चलने लगा हूं मैं..
पर अब भी बिस्तर में सारी रात एक ही करवट नहीं सोता मैं....
लगता है,तुम्हारा हांथ मेरे सीने पे रखा है...
तकिया को तुम्हारा सीना समझ के सोता मैं...✍🏿♥️
~ उदय'अपराजित♥️
और तुम्हारी बातें,फरेबी वादें....पलट पलट के पढ़े हैं मैंने...
अब फोन खो भी जाए तो क्या हुआ,एक एक वादे जहन में गढ़े है मैंने...
सिर्फ तेरी चुप्पी ने दिल का मरीज कर दिया....
वरना ये दिल खुद को मौत पर भी
और मैं हूं तो हमेशा रहूंगा...
नहीं तो तो पलटूंगा भी नहीं...
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