अगर अयोध्या एक मानव होती/अयोध्या का मानवीकरण(Script)

क्या कभी सोचा है अयोध्या जैसी विशालकाय संरचना सिर्फ एक दो-गज का मानव होती तो क्या होता,निश्चय ही वह किसी मिथिला को ढूंढ रहे होते...जो उनके कंधे से कंधे मिलाकर चलने को हमेशा तत्पर रहती...
और ऐसा ही हुआ होगा जिसके परिणामस्वरूप बिहार की मिथिला उत्तर प्रदेश की अयोध्या से अब भी कंधे मिलाए हुए है....
लेकिन साथ ही साथ यह भी सोचनीय हो जाता है,यदि अयोध्या ही मानव होती,तो प्रभु श्रीराम कहां होते,या होते भी या नहीं?
तो होते!!!अवधकाल में जन्मभूमि को ही सबसे बड़ा संरक्षक माना गया है,उन्हें ही मातृ भी,उन्हें ही पितृ भी कहा गया है...क्या यह किसी अयोध्या के मानवीकरण से कम है!!?
अयोध्या का मानवीकरण कोई नई बात नहीं है,भारतीयता में ना सिर्फ जैविक,बल्कि अजैविक वस्तुओ में भी जान डालने की कोशिशें अनवरत चलती चली आ रही हैं....माध्यम बदलते रहे,कभी पुराण लेखों के जरिए तो कभी काव्यों महाकाव्यों के जरिए...
भगवान श्रीराम के कहे हुए वक्तव्य..."जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" से अजैविक जन्मभूमि का मानवीकरण स्पष्ट झलकता है...
अयोध्या का मानवीकरण होते ही हमें सरयू का ध्यान आ बैठता है,उसके बिना अयोध्या पर की हुई कोई भी परिकल्पना निरर्थक है...लेकिन इस मानवीकरण में सरयू की सहभागिता क्या रहेगी....निश्चय ही वह अयोध्या की पुत्री होगी,जो अपने समस्त सहभागियों,साथियों को अपनत्व की भावना लेकर सदैव उन्हें जल देकर उनके स्वस्थ रहने की कामना करती होगी...

और गोमती तो सरयू की बड़ी बहन है,जो भारतीयता के उत्तरी हिस्से को स्वयं में पूर्णतया समेटे हुए है,किंतु अयोध्या की बड़ी पुत्री होने के चलते उसे उतना लाड़ दुलार नहीं मिला जितना कि रामायणकाल में सरयू को....
हनुमान गढ़ी अयोध्या के किसी अंगरक्षक से कम नहीं है,जो खड़ी है एक ढाल की भांति,अयोध्या की रक्षा के लिए सदैव तत्पर...
ऐसे ही अनेकों पुत्रों में सबसे अग्रज पुत्र "रामजन्म-भूमि" पर सारी अयोध्या की जिम्मेदारियों का अंबार है, उस विशेष स्थानिक व्यक्तित्व के बगैर मानो अयोध्या का अस्तित्व ही न बच रहा हो,वह भौमिक व्यक्ति अपने आप में ही एक विशेष स्थान रखता है...
सभी भाई बहनों में सबसे अनुज गुप्तार घाट की अपनी अलग ही विशेषता है....जो अयोध्या की सार्वभौमिक संपत्तियों को मुखाग्नि देने का प्रतीक है...
अयोध्या एक समूह या स्थान नहीं बल्कि किसी एक खास व्यक्तित्व का परिचायक है,इसका उल्लेख हमें रामायण में देखने को मिल जाता है,फिर वो चाहे तुलसीदास की हो या महर्षि वाल्मिकी की....✍️
                              ~उदयराजसिंह'अपराजित💥

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