बहुत याद किए उसको मैंने हफ्तों तक अब उसे मैं याद आना चाहता हूं...

बहुत याद किए उसको मैंने हफ्तों तक अब उसे मैं याद आना चाहता हूं...
कि अब मैं फिर से दिल लगाना चाहता हूं...
भूला नहीं हूं मैं उसके लफ्जों को, पर उसे मैं भुलाना चाहता हूं
अब मैं फिर से दिल लगाना चाहता हूं...

तड़पा हूं जिसके खातिर रातों तक..
कि अगर सुन रही हो महफिल बनकर मेरी तो मैं तुम्हें आज सुनाना चाहता हूं...
जितनी भी याद है तुमसे थी,तुमसे थी उन्हें जहन में बसाए रखना चाहता हूं
अब मैं दिल लगाना चाहता हूं...

छोड़ा था आज बखत जिस तुमने...
बखत उसको याद रखना चाहता हूं...
अब मैं फिर से दिल लगाना...

चुप्पी ने तुम्हारी दो टुकड़ों में तोड़ दिया था मुझको और फिर अचानक "कुछ नहीं" ने चकनाचूर कर दिया था...
उन दो लफ्जों ने मुझको उस दिन से मगरुर कर दिया था...
पर फिर भी मैं तुमसे यह बताना चाहता हूं...

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