मैं तुम्हें किसी और के प्रेम में पड़ते नहीं देख सकता...

मैं तुम्हें किसी और के प्रेम में पड़ते नहीं देख सकता...
इसलिए होता जा रहा हूं तुम्हारी उस ब्लैकनवाइट फोटो के नजदीक...
जिसका रंग सिर्फ मुझे दिखता है,और सिर्फ मुझे...
औरों के लिए सिर्फ दो रंग हमें इंद्रधनुष की तरह बांधते ही चले जा रहे हैं...
और मैं भी बंधता ही चला जा रहा हूं जान बूझकर....
जान बूझकर कि फिर ना निकल सकूं इस जाल से ..
और कहीं फिर ना प्रेम में पड़ जाऊं तुम्हारे..तब तक तुम पूर्णतया किसी और के हो चुके होगे...
फिर शायद मेरे होकर भी एक अंश उसके पास छोड़ ही आओगी...
पर मैं इसमें भी खुश हो जाऊंगा...जैसे अभी खुश हूं...
जब जब तुम्हारी परछाईं से होकर गुजरता हूं,धूप में खड़ी तुम...
उस डेढ़ गज छांव में स्थिर रहने का जी कर जाता है, अक्सर ही...
फिर मैं आंख बंद कर लिया करता हूं,और मान लेता हूं उस छांव के पार सारी धूप को ही वो छांव...और रमा रहता हूं जब तक सूर्य ढल नहीं जाता,चांदनी खिल नहीं जाती...
तारों की टिमटिमाहट चलायमान रहती है...
           "अधूरी" ~उदय'अपराजित

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