मैंने प्रेम के कारण मित्र खो दिया...मित्र के कारण प्रेम...

मैंने प्रेम के कारण मित्र खो दिया...मित्र के कारण प्रेम...
ना मित्र मिला ना प्रेम..
जब प्रेम खोया तो दर्द हुआ...
जब मित्र गया तो मृत्यु हुई...

और राधे कहती थी खुदको...
मुझको वो श्याम बताती थी...
और आखिरी शिकायत कर दूर हुई...
अब बातें बस तरसाती थी..

और जब राधे कहती थी खुदको...
तो रुक्मिणी से क्यों दूर हुई...
जब पीड़ा में थे हम तब तो
क्यों मध्यराह में छोड़ गई...

जब प्रेम तुम्हें भी रहा सखे...
तो मैं ही पहले क्यों कह दूं...
माना ये दर्द तुम्हे भी है...
बोलो अब मैं कैसे रह लूं...

अब तुमको जो भी है खुद समझो...
मैं भी खुद को समझा लूंगा
जो स्नेह रहा तुमसे,खुद में ही उसको समा लूंगा...✍️
                                                                         उदय'अपराजित

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