अधुरी..दिल्ली की तंग गलियां...
तुम्हें पता है...?
जब भी पूरा चंद्रमा देखता हूं,तो क्यों इतना भाता है...?
दिल्ली की तंग गलियों में तेरे हाथों में अपना हांथ याद आता है...
खौलती चाय,और हर चाय के बाद,मैरून कत्थे वाला पान...
और वो दिलकश नजारे...
तुम्हें पता है ना..?
तुम्हारी पसंद की प्लेन वाली शर्ट और मेरे पसंद का तेरा झुमका...
वैसे झुमके तो सारे ही अच्छे लगते हैं तुझपर...
पर फिर भी,माथे की छोटी से बिंदी और तेरे बालों का दाईं ओर से बाईं आंख से होते हुए गालों से उतर जाना...
हाययय....
बस...याद आता है...
याद आती हैं तेरी हर वो अठखेलियां...
याद हैं तेरी सारी पहेलियां...
तुम्हें पता है...ना....?
सब याद है....
बस,नहीं याद है तो
बेफिजूल में ही लंबे रास्ते लेकर
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