तुम्हारा दूर जाना हमारे उस डर से भी बड़ा था...(Poetry)

तुम्हें पता है...
तुम्हारा दूर जाना हमारे उस डर से भी बड़ा था...
जैसे बचपन में स्कूल जाते हुए किसी संतरे रंग के कपड़े पहने हुए झोली बाबा को देखकर भाग खड़े होना...
और फिर कई दिनों तक स्कूल ही न जाना...
या जाना तो कोई दूसरा लंबा रास्ता लेते हुए....

ठीक वैसा ही डर था...
सुन रही हो ना...
जैसा...
स्कूल से वापस लौटते हुए बिना किसी झिझक के बगीचे से आम तोड़ना...
और मालिक के दौड़ाने पर भाग खड़े होना...
सिर्फ आधी कच्ची अमिया लेते हुए...
बदले में बोरी भले ही भूल जाएं,जिसपर स्कूल में बैठना होता था...
और इतना डर, कि उसके दौड़ाने पर सड़क किनारे की नहर में कूद पड़ना,और निकल जाना उस पार...
और सारा डर गायब हो जाना अचानक ही...

अब वो डर नहीं लगता,और ना गायब ही होता इतनी जल्दी...
सुन रही हो ना.....
तुम्हें पता है...!!!

और ना खुशी ही होती इतनी जल्दी....
जो मम्मी के वो नोकिया 1100 में गुड्डा और सांप वाला गेम खेलने को फोन मिल जाने पे होती थी...!!

ना तो होता है वो पछतावा...
सुन रही हो ना...
जो जल्दी उठ जाया करते थे स्कूल जाने को सोचकर कि सब खुश हो जाएंगे...
और बाद में मालूम चलता उस दिन संडे होने को...!!!
अब कुछ नहीं होता...
क्योंकि तुम सुन नहीं रही अब...!!!
फिर भी मैं कहूंगा...
सुन रही हो ना...!!!
 ~उदय'अपराजित🥀

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