बारिश, वो और ख्वाब...(script)
अब उसने जाने का मन बना ही लिया था...आज वो ठीक वैसे ही बात कर रही थी,जैसे ऑपरेशन के ठीक पहले कोई डॉक्टर करता है....वो समझा रही थी,सब सही हो जाएगा...लोग तो आते जाते रहते हैं....अपना खयाल रखना....
मैंने तो मेरे खयालों में भी उसके अलावा किसी को भी ना रखा था,आखिर अब उसके बिना खयाल कैसे रखते...ख्वाब जो उसने मुझे दिखाए थे,खयाल जो मैंने खुद ही कर लिए थे,बिना उसको बताए ही...
अचानक वो किसी को कॉल करने लगती है,"मुझे इश्क सिखा करके मुझे छोड़ तो ना दोगे..." हेलो टोन थोड़ी जानी पहचानी थी...
अब बस साथ बैठे हुए बातें झोंके चले जा रहे थे,वो भी इधर उधर की...
कि अचानक उसने कहा,चलो ना, पंगे लड़ाया जाए...आज पहली बार ना तो वो जीतना चाह रही थी,और ना तो आदतन मैं....
कुछ तो चल रहा था उसके दिमाग में...कुछ पूछता कि बारिश होने लगी...और मैं उसका हांथ खींचकर छांव की ओर जाने लगा,पर बारिश की भीगे हाथों के कारण हांथ छूट गया...और वो नहीं आई...भीगती रही अकेले ही काफी देर तक बारिश में बैठी हुई...,मैंने भी न बुलाया दूसरी दफा...!!!
और खड़ा रहा अकेला तब तलक,जब तलक बारिश बंद ना हो गई....वहां से जाने ही वाला था सब छोड़कर अकेले ही बिना बताए हुए,कि पीछे से वो आकर मुझसे लिपट गई.... मैं भी भीग गया था अब उसकी आर्द्र सिसरन से... मैं उसकी ओर मुड़ा ही था कि वो बारिश की सीप में लिप्त अपने अधरों को मुझमें खोने को चली कि आंखें खुल गईं,और देखा कि बाहर बारिश अब भी हो रही थी, मैं पानी से सराबोर पूरा भीगा हुआ था....ठीक से कुछ याद भी ना आ रहा था अब कि शायद बारिश बंद होने से पहले ही चल दिया था उसको छोड़कर,तो फिर वो क्या था,उसका मुझसे गले लगना,उसकी हृदय स्पंदन की ध्वनियां जो मुझे साफ सुनाई दे रही थी कुछ देर पहले अचानक ऐसा क्यों लग रहा था जैसे अब वो धड़कनें हैं ही नहीं इस जहान में....तो फिर वो सब क्या था,कोई सपना,जो मैं वहां से आकर ही देखने लग गया,उसको अकेले छोड़कर...!!
मैं कब आया?,कैसे आया?....इस पूरी कहानी में कितना सपना था कितना सच,कहां से सपना शुरू हुआ वास्तविकता को छोड़कर,कुछ याद नहीं था अब.... मैं वहां उसके पास था भी या नहीं,गया भी था या नहीं....हजारों प्रश्न मन में चलायमान थे अनवरत ही...और अगर मैं वहां गया नहीं, तो आखिर मैं बारिश में सराबोर कैसे....!!!???
~उदय'अपराजित🥀
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