हॉस्पिटल....(स्क्रिप्ट)
और मैं हॉस्पिटल के बाहर जाकर चाय पीने लगा...मौसम भी अच्छा था,सुबह का माहोल था,गर्मी की बारिश के दौर में हल्की ठंडक लग रही थी...तभी देखते ही देखते एक कार अचानक ही एक साइकल में टक्कर मार देती है,टक्कर पीछे से थी इसलिए उस पर बैठे दोनों लोग रोड के किनारे की ओर हो गिरे...
साइकिल चलाने वाले की उम्र वही कुछ 50-55 रही होगी...साइकिल के आगे डंडे पर स्कूल ड्रेस में बैठा हुआ एक बच्चा,जिसे शायद उसके पापा स्कूल छोड़ने जा रहे होंगे,उम्र वही 8-10 रही होगी,मुंह के बल वहीं पर फिसल जाता है ...उसके शरीर में कोई हलचल नहीं थी अब...उसके पापा तेज टक्कर से दूर जाकर गिरते हैं,जो तीन या चार बार पलटते हुए लुढ़कते चले जाते हैं...
शायद उन्हें समझ ही न आया होगा, कि आखिर ये हुआ क्या...
उन्होंने पीछे नजर डाली और देखा,कि उनका बच्चा प्रणाम मुद्रा में सिर के बल बिना किसी शारीरिक हरकत के लेटा हुआ है, हांथ भी जस के तस इधर उधर मुड़ा हुआ है..उनके मुंह से बस एक ही चीख निकलती है...."हाय मेरा बच्चा" और तकरीबन 4 बार वहीं पर यह रटते हुए दौड़कर उसे कंधे पर डाल लेते हैं...आसपास लोग भी मदद के लिए जमा हो जाते हैं...सोचने-लिखने-बताने में भले ही वक्त लग रहा हो,पर उस दौरान इतनी तेजी से सारी चीजे हुईं कि किसी को कुछ अंदाजा ही न लगा कि क्या किया जाए...
वो बच्चे को कंधे पर लिटाकर अस्पताल की ओर दौड़े...जो सड़क के डिवाइडर के उस पार था,उसी ओर मैं भी खड़ा हुआ था, मैंने और कुछ नहीं,बस जल्दबाजी में भागती हुई गाड़ी का नंबर देख लिया...टक्कर इतनी तेज थी कि गाड़ी का दाहिनी ओर का बोनट पूरी तरह धज्जी हो गया था...
वो बच्चे को कंधे पर लादे हुए सड़क पार करने को दौड़ ही रहे थे कि कई लोग मदद के लिए दौड़े,अंदर जाती हुई एक बाइक को रोककर सीधे इमरजेंसी वार्ड तक पहुंचाया गया...
उसके पिता बच्चे को बेड पर लिटाकर खुद नीचे जमीन पर लोट गए....बच्चा अब भी किसी हरकत में न था...उन्होंने रोते हुए घर का फोन नंबर बताया...थोड़ी ही देर में घर के कई सारे लोग भी जमा हो गए जिसमें एक महिला भी थी,जिनके रोने से लग रहा था शायद मां रही होगी...
उसका ट्रीटमेंट तो चल ही रहा था कि मैंने कहा,इनका भी ट्रीटमेंट करिए,दूर जाकर गिरे थे, फिसले नहीं बट/किंतु चोट आ गई है...ब्लड निकल रहा है...सर से,पैर से....
उन्हें उठाया गया तो वो उठ न पाए....उनकी कमर टूट चुकी थी....
लेकिन फिर वो बच्चे को कांधे पर लादकर चिल्लाते हुए रोड के पार कैसे लाए?,बच्चे को कंधे पर लादे हुए बाइक पर बैठे कैसे रहे आखिर?,कैसे वो इमरजेंसी के बाहर से अंदर बेड तक लाए,वो भी लादे हुए,चिल्लाते हुए..!?
क्या ये बाप का बच्चों के प्रति अनंत,अपूर्ण,अक्षुण प्यार है....जो शायद ही कभी पन्नों पर लिखा जाता हो?....वास्तव में मां का प्रेम अनमोल होता है,प्रगाढ़ है,जो शायद ही कोई किसी के प्रति रख सकता है,पर पिता का प्रेम?वो तो अपरिभाषित है,शायद इसीलिए ही इसको परिभाषा देने की किसी ने चेष्टा नहीं की...!!!✍️
~उदय राज सिंह'अपराजित
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