सुनो, मैं तुम्हें बनाना चाहता हूं...वो कविताएं...(Poetry)

सुनो, मैं तुम्हें बनाना चाहता हूं...वो कविताएं
जो कभी पढ़ी नहीं गईं...
और न ही सुनी गई...
बस महसूस की हैं..
 
समझी भी नहीं गई,क्योंकि समझ से परे थी...
समझ में तो आसान चीजें आती हैं...
और तुम्हारा मेरा या मेरा तुम्हारा होना...
 इतना ही आसान होता...तो कविताएं ही नहीं होती...
उन कविताओं की जगह तुम होती....
 
तुम होती,साथ में तुम्हारा अल्हड़पन भी...
जो मुझे अक्सर ही पसंद आया था...
जब तुमने अटखेलियां करते करते...हमारे बालों को सहलाया...
या आंखों से आंखें मिलाई....
वर फिर खुद ही झुका लीं...कुछ क्षण उपरांत...
 
वो सब कविताएं ही तो हैं...
उन कविताओं को सार्थक करने...
कहां कहां नहीं भटका...
तुम्हे ढूढा...
कभी चांद में...
तो कभी धीमी हवाओं में...
 
जब भी चांद को देखा तो लगा...
तुम भी देख रही होगी,यही चांद...
और जब भी हवाएं चली...
तो उसमें महसूस किया तुमको भी...
कि कहीं तो होगी तुम,जिन्हे छूकर आ रही होंगी ये हवाएं...
 
चांद और हवाओं से परे भी तुम्हें खोजा...
कभी उड़ती पतंगों में...
कभी चलती रेल गाड़ियों में...
पर हर जगह खोजना निरर्थक ही रहा...
जिस दिन सार्थक होगा...
उस दिन से कविताएं निरर्थक हो जाएंगी...✍🏿♥️
                                       ~उदय'अपराजित🌈

Comments

Popular posts from this blog

2 Line Poetry

बहुत याद किए उसको मैंने हफ्तों तक अब उसे मैं याद आना चाहता हूं...

सुनो.....(Poetry)